महंगाई बहुत है ,वे भी करते तसदीक है,
और हम क्या कहें बाकी सब ठीक है.
-दिन-दिन वसन उतर रहा तन से,ना यह लन्दन
ना पेरिस ना ग्रीस है, बाकी सब ठीक है.
लाशों पे हँस-हँस के सियासत कर लेते हैं, कहते--
यहाँ की जनसंख्या अधिक है, बाकी सब ठीक है.
जो जितना दूर जनता से, सत्ता के उतना करीब है
और हम क्या कहे,बाकी सब ठीक है.
'हिन्दुस्तानी' सिर्फ परदे पे , नहीं तो ठाकुर, ,यादव
हरिजन, ब्राम्हण, बनिक है, बाकी सब ठीक है.
एक ओर नेता , एक ओर अफसर, जनता फुटबॉल
सब मारत फ्री-किक है, बाकी सब ठीक है.
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विजय कुमार वर्मा डी एम डी -३१/बी,बोकारो थर्मल
vijayvermavijay560@gmail.com
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