Friday, April 29, 2011

गब्बर सिंह जी का चरित्र चित्रण






*गब्बर सिंह** **का चरित्र चित्रण*


1.* **सादा जीवन**, **उच्च विचार*: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और
मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी,महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश
जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो.जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित
कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में
उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की
क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

. *दयालु प्रवृत्ति**:* ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने
ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर
उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.


3.* **नृत्य**-**संगीत का शौकीन*: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार
ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह
जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद
उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था.उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को
एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त
करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


*4. **अनुशासनप्रिय नायक**:* जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम
होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को
दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

*5. **हास्य**-**रस का प्रेमी**:* उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और
उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो
हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.


*6. **नारी के प्रति सम्मान*: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद
उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


*7. **भिक्षुक जीवन**:* उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए
भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा
-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी
या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


*8. **सामाजिक कार्य**:* डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का
भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो
जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस युग में 'कौन
बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर बनाने का गब्बर का
यह सच्चा प्रयास था.


*9. **महानायकों का निर्माता**:* अगर गब्बर नहीं होता तो जय और व??रू जैसे
लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर के
व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता जागी.

Saturday, April 23, 2011

सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा




सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा 
हम भेड़-बकरी इसके यह ग्वारिया हमारा 

सत्ता की खुमारी में, आज़ादी सो रही है 
हड़ताल क्यों है इसकी पड़ताल हो रही है 
लेकर के कर्ज़ खाओ यह फर्ज़ है तुम्हारा 
सारे जहाँ से अच्छा ....... 

चोरों व घूसखोरों पर नोट बरसते हैं 
ईमान के मुसाफिर राशन को तरशते हैं 
वोटर से वोट लेकर वे कर गए किनारा 
सारे जहाँ से अच्छा ....... 

जब अंतरात्मा का मिलता है हुक्म काका 
तब राष्ट्रीय पूँजी पर वे डालते हैं डाका 
इनकम बहुत ही कम है होता नहीं गुज़ारा 
सारे जहाँ से अच्छा ....... 

हिन्दी के भक्त हैं हम, जनता को यह जताते 
लेकिन सुपुत्र अपना कांवेंट में पढ़ाते 
बन जाएगा कलक्टर देगा हमें सहारा 
सारे जहाँ से अच्छा ....... 

फ़िल्मों पे फिदा लड़के, फैशन पे फिदा लड़की 
मज़बूर मम्मी-पापा, पॉकिट में भारी कड़की 
बॉबी को देखा जबसे बाबू हुए अवारा 
सारे जहाँ से अच्छा ....... 

जेवर उड़ा के बेटा, मुम्बई को भागता है 
ज़ीरो है किंतु खुद को हीरो से नापता है 
स्टूडियो में घुसने पर गोरखा ने मारा 
सारे जहाँ से अच्छा .......


CLERCKASAN KE LAABH









घर से दफ्तर को चलो, कर नाश्ता भरपेट !

उलटो-पुल्टो फाईलें, सुलगाओ सिगरेट !!


सुलगाओ सिगरेट, इत्र का फाहा सूंघो !


पाँव मेज़ पर फैलाकर, जी भरकर ऊंघो !!


घर बच्चों के कारण, रह गया रेस्ट अधूरा !

दफ्टर में हो जाए, नींद का कोटा पूरा !!


आवश्यक कुछ काम कागज़ी छोडो ऐसे

overtime बने, प्राप्त हों दुगुने पैसे !!

बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है



बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है

बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है

यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है

अमीरी रेशम-ओ-कमख़्वाब में नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में रहती है

मैं इन्साँ हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत में शामिल है
हवा भी उसको छू कर देर तक नश्शे में रहती है

मुहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है
कमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में रहती है

ये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है सूबों में
ख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में रहती है.

गरीब हूँ मैं..



रोटी के लिए घूमता रहता हूँ ,

इधर उधर ,

पाँव छिल जाते है ,

रुकता नही हूँ मगर ,

दिल से देगा मुझे कोई उसे भगवान् उसे बहुत देगा

मेरी दुआ है सभी के लिए ,

चाहे कोई बड़ा हो या छोटा ,

मिटटी के खिलौनों से खेलते है बच्चे मेरे ,

गर्मी सर्दी बारिश को हंस कर झेलते है

सर पर छत भी न दे सका अपने बच्चो को

बाप में अजीब हूँ

गरीब हूँ में मजबूर हूँ मैं ,

पूरी नही कर पाता बच्चो की इच्छाओ को ,

बहुत ही बदनसीब हूँ मैं ,

गरीब हूँ मैं गरीब हूँ मैं......

आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये..




कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,

ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,

नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,

देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...

हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं


 गरीबी में भी बच्चे यूँ उड़ाने पाल लेते हैं  

ज़रा सी डाल झुक जाए तो झूला डाल लेते हैं 


जहाँ में लोग जो ईमान की फसलों पे जिंदा हैं
बड़ी मुश्किल से दो वक्तों की रोटी दाल लेते हैं

शहर ने आज तक भी गाँव से जीना नहीं सीखा
हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं

परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते हैं

अभी नज़रों में वो बरसों पुराना ख्वाब रक्खा है
कोई भी कीमती सी चीज़ हो संभाल लेते हैं

ये मुमकिन है खुदा को याद करना भूल जाते हों
तुम्हारा नाम लेकिन हर घडी हर हाल लेते हैं

हमें दे दो हमारी ज़िन्दगी के वो पुराने दिन
'रवि' हम तो अभी तक भी, पुराना माल लेते हैं 

Friday, April 22, 2011

चम्चासन के लाभ



नहीं नौकरी मिल रही बैठे ही बेकार !
चम्चासन की कृपा से, हो जाये उद्धार!!
हो जाये उद्धार, उदासी दूर भगाओ !
बिना परिश्रम इन्क्रीमेंट  प्रमोशन पाओ !!
फटी हुई तकदीर तुम्हारी सिल सकती है !
चम्चासन से मुफ्त नौकरी मिल सकती है !!

Tuesday, April 19, 2011

बाकी सब ठीक है


hasparihas हास्य कविता hasya kavita 

महंगाई बहुत है ,वे भी करते तसदीक है,
और हम क्या कहें बाकी सब ठीक है.

-दिन-दिन वसन उतर रहा तन से,ना यह लन्दन
ना पेरिस ना ग्रीस है, बाकी सब ठीक है.

लाशों पे हँस-हँस के सियासत कर लेते हैं, कहते--
यहाँ की जनसंख्या अधिक है, बाकी सब ठीक है.

जो जितना दूर जनता से, सत्ता के उतना करीब है
और हम क्या कहे,बाकी सब ठीक है.

'हिन्दुस्तानी' सिर्फ परदे पे , नहीं तो ठाकुर, ,यादव
हरिजन, ब्राम्हण, बनिक है, बाकी सब ठीक है.

एक ओर नेता , एक ओर अफसर, जनता फुटबॉल
सब मारत फ्री-किक है, बाकी सब ठीक है.
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विजय कुमार वर्मा डी एम डी -३१/बी,बोकारो थर्मल
vijayvermavijay560@gmail.com

कलियुग की गीता ;;;;;;;;