जब मैं छोटा था ,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी ...
मुझे याद है मेरे घर से " स्कूल " तक का वो रास्ता ,
क्या क्या नहीं था वहां ,
चाट के ठेले , जलेबी की दुकान , बर्फ के गोले , सब कुछ ,
अब वहां " मोबाइल शॉप ", " विडियो पार्लर " हैं , फिर भी सब सूना है ....
शायद अब दुनिया सिमट रही है ......
जब मैं छोटा था ,
शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी ....
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे , घंटो उडा करता था ,
वो लम्बी " साइकिल रेस ", वो बचपन के खेल ,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना ,
अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है ..........
शायद वक्त सिमट रहा है ........
जब मैं छोटा था ,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी ,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना ,
वो दोस्तों के घर का खाना , वो लड़किया , वो साथ रोना ,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं , पर दोस्ती जाने कहाँ है ,
जब भी " ट्रेफिक सिग्नल " पे मिलते हैं " हाई " करते हैं ,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं ,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं .
जब मैं छोटा था …
शायद………….
क्योंकि इस ब्लॉग की रचनाएँ अधिकांशतः अन्य व्यक्तियों द्वारा रचित हैं, मैंने तो बस उनसे उधार लिया हैं !इसके लिए मैं सभी ज्ञात अज्ञात रचनाकारों को धन्यवाद देता हूँ..
Thursday, April 7, 2011
जब मैं छोटा था
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