Monday, April 4, 2011

तेरी याद में ( मेरी स्वलिखित रचना )

कुमुदनी विरह तेरा ,

तोड़ देता हृदय मेरा !

मैं भटकता स्मृति तेरी लिए हुए,

मांगता हूँ फिर वही अब साथ तेरा !

सोचता हूँ, तुम थी तो ऐसा था, तुम थी तो वैसा था,

बिना तेरे, हृदय करे अब चीत्कार मेरा !

तुम्हारे साथ हम चले, तो दुनिया एक गुलिस्तान थी,

बिना तेरे बचा है सिर्फ रेगिस्तान मेरा !

एक मोड़ था वो भी, एक मोड़ है ये भी ,

कभी अमृत की बारिश थी, और अब विषपान मेरा !

छू के गुजरती थी हवा, जब तेरे दामन को,

फिजा फूलों की खुशबू सी, हमेशा महक जाती थी ,

मेरा मन महक जाता था, मेरा तन बहक जाता था !

बह गया सारा गुमाँ मेरा, अब साथ तेरे,

कुमुदनी ! क्या बचा अब पास मेरे ?

! अब लौट के जा,

देखता मैं राह तेरा !

कुमुदनी विरह तेरा,

तोड़ देता हृदय मेरा !!

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