ऐ कुमुदनी विरह तेरा ,
तोड़ देता हृदय मेरा !
मैं भटकता स्मृति तेरी लिए हुए,
मांगता हूँ फिर वही अब साथ तेरा !
सोचता हूँ, तुम थी तो ऐसा था, तुम थी तो वैसा था,
बिना तेरे, हृदय करे अब चीत्कार मेरा !
तुम्हारे साथ हम चले, तो दुनिया एक गुलिस्तान थी,
बिना तेरे बचा है सिर्फ रेगिस्तान मेरा !
एक मोड़ था वो भी, एक मोड़ है ये भी ,
कभी अमृत की बारिश थी, और अब विषपान मेरा !
छू के गुजरती थी हवा, जब तेरे दामन को,
फिजा फूलों की खुशबू सी, हमेशा महक जाती थी ,
मेरा मन महक जाता था, मेरा तन बहक जाता था !
बह गया सारा गुमाँ मेरा, अब साथ तेरे,
ऐ कुमुदनी ! क्या बचा अब पास मेरे ?
आ! आ अब लौट के आ जा,
देखता मैं राह तेरा !
ऐ कुमुदनी विरह तेरा,
तोड़ देता हृदय मेरा !!
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