Thursday, April 7, 2011

जीवन ,, (बीनू द्वारा रचित )

जीवन क्यों एक त्रासदी बन गया ?
माँ भी पुत्र चाहती थी
बेटी जनने कि सजा उसे पता थी
पर ,मैंने ही उसकी गोद में आँखें खोली |

मुझ अनचाही संतान से
उसकी कोख धन्य नहीं हुई ,
हाँ , चूल्हा -चौका सम्हालने में
मुझसे कुछ सहूलियत मिल गई |

विवाह की उम्र तक
घर में शरण मिला रहा ,
फिर कन्यादान कर
पिता भी बोझ मुक्त हुए |

अब एक नया मालिक था मेरा ,
इस पशु -पति से निभाना ही मर्यादा थी ,
शर्म-संकोच मेरा गहना ,
ख़ामोशी मेरी पहचान थी |

हाथ पत्थर से हो गए
पैर बीवा इयों से भर गए ,
धीमे -धीमे
मैं पूरी पथरा गई

अब लोग मुझे देवी कहते हैं |

बीनू IRS
ACIT, NADT,NAGPUR

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