दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए शादीशुदा महिलाओं को हिदायत दी है कि बात पूरी करने के लिए वो एक बार में 140 शब्दों से ज़्यादा का इस्तेमाल न करें।
अदालत का कहना है कि ‘बोलना’ चूंकि संविधान में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के तहत आता है इसलिए चाहकर भी हम महिलाओं के लिए कोई शब्द-सीमा तय नहीं कर सकते मगर बड़े भाई के होने नाते उन्हें सलाह ज़रूर दे सकते हैं कि जितना कम बोलें, उतना ही उनकी शादीशुदा ज़िंदगी के लिए बेहतर होगा।
मनमोहन सेन बनाम अर्चना पूरन सेन के एक दिलचस्प मामले पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने महिलाओं को ये हिदायत दी। दरअसल दिल्ली निवासी अर्चना पूरन सेन ने आरोप लगाया था कि उनके पति मनमोहन सेन ने पिछले 20 सालों में उनसे एक भी बात नहीं की है…वो कभी कुछ नहीं बोलते…लिहाजा़ उन्हें अपने पति से तलाक चाहिए। इस पर जब अदालत ने मनमोहन सेन से उन्हें अपना पक्ष रखने को कहा तो उनका जवाब सुनकर जजों के होश उड़ गए।
मनमोहन सेन का कहना था कि ऐसा कुछ नहीं है कि 20 सालों से मैंने अपनी पत्नी से कोई बात नहीं की। इतने सालों से मैं इसलिए नहीं बोला क्योंकि मैं अपनी पत्नी की बात नहीं काटना चाहता था।
जज-मतलब…मनमोहन-जज साहब, मतलब यही कि मेरी बीवी अर्चना पिछले बीस सालों से दिन-रात लगातार बोल रही है। इस दौरान मैंने बोलने की कई कोशिशें की मगर सफलता नहीं मिली…अभी पिछले साल मई में जब बोलते-बोलते अचानक ये खांसने लगी तो मुझे लगा था कि ये अच्छा मौका है…मैं कुछ बोल सकता हूं…मगर इससे पहले कि मैं कुछ बोलता उसने जैसे-तैसे खुद को मैनेज किया और चालू हो गई।
और तो और अर्चना मुझसे शिकायत करती है मैं इससे बोलता नहीं मगर हैरानी की बात तो ये है कि जब-जब इसने मुझसे पूछा कि…बताओ…आप मुझसे बोलते क्यों नहीं… तब भी इसने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया। आप ही बताएं जज साहब…बिना बोलने का मौका मिले, कोई इंसान कैसे बता सकता है कि वो बोलता क्यों नहीं!
ये सुनना था कि फैसले की सुनवाई कर रहे जज नवजोत सिंह की आंखों में आंसू आ गए। शादीशुदा आदमी की ये बेबसी सुन उनका मन भर आया। दूसरे कटघरे में खड़ी मनमोहन की बीवी अर्चना भी फूट-फूट कर रोने लगी। उसे भी अपनी ग़लती का अहसास हो गया था।
तभी खुद को संभालते हुए जज नवजोत सिंह ने कहा कि देखिए बोलने की आज़ादी हमें संविधान देता है लिहाज़ा उसमें हम कोई फेरबदल नहीं कर सकते लेकिन मनमोहन जी की पूरी व्यथा सुनने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि वक्त आ गया है कि शादीशुदा महिलाएं अपनी इस आदत में कुछ क्रांतिकारी बदलाव लाएं। जैसे ट्विटर से सीख लेते हुए आप भी कोशिश करें कि एक बार में जो भी कहना है उसे किसी तरह 140 शब्दों में निपटाएं।
आपको ये समझना होगा कि भले ही आपके बोलने की कोई सीमा नहीं है मगर जो आदमी सुन रहा है, उसकी तो अपनी लिमिट है। जितना आप कम बोलेंगी, उतना ही वो ज़्यादा सुनेगा और जितना सुनेगा, उतना ही ज़्यादा वो याद रखेगा।
अगर आप नॉनस्टॉप बोलती रहें और पति से ये उम्मीद करें कि वो आपकी हर बात सुनकर सिर हिलाए तो ये उसके साथ ज़्यादती होगी। हकीकत तो ये है कि ज़्यादातर पति शादी के बाद सहमति में सिर हिलाने के लिए खुद को ट्रेन कर लेते हैं। बीवी समझती है कि पति उसकी बात सुनकर सिर हिला रहा है जबकि पति मन ही मन ये सोच रहा होता है कि ऑफिस का फलां प्रोजेक्ट कल दोपहर तक डिलिवर हो पाएगा या नहीं।
महिलाओं को ये तथ्य भी स्वीकारना होगा कि कान का निचला और ऊपरी हिस्सा भले ही आप बाली पहनने के लिए इस्तेमाल करती हों मगर कान के बीच का हिस्सा ईश्वर ने सुनने के लिए बनाया है। मगर आप कुछ सुन तो तभी पाएंगी जब सामने वाला बोलेगा और वो बोले इसके लिए ज़रूरी है कि आप पांच-छह घंटे के इंटरवेल में चुप हो जाएं।
इसके बाद अगले आधे घंटे तक जज नवजोत सिंह नज़र नीची कर यूं ही बोलते रहे…इस बीच जैसे ही उन्होंने पानी का गिलास पीने के बाद सिर उठाया तो देखा पूरी अदालत खाली हो चुकी थी…पंखे-लाइट बंद कर कर्मचारी जा चुके थे। ‘हाज़िर हो’ कहने वाले दो साथी, जिनकी मजबूरी थी कि वो वहां से भाग नहीं सकते थे, बगल में बेहोश पड़े थे…और सिर्फ अर्चना पूरन सिंह कटघरे में खड़ी थी…जिनसे जैसे ही जज नवजोत सिंह की नज़रें मिलीं उन्होंने चिल्लाकर बस इतना कहा…थोड़ा कम बोला करो….और तमतमाते हुए वहां से चली गईं!
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