Friday, August 12, 2011

तौबा ऐ फेसबुक मेरी तौबा…




दिन भर चिपक के बैठे वेवजह बिना तुक
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक

दिन भर लिखे दीवार पे गन्दा किया करे
अलसाये पड़े काम धंधा किया करे
अपनी अमोल आँखों को अंधा किया करे
प्रोफ़ाइलें निहारीं किसी की किसी का लुक
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक

हर ग्रुप किसी विचार का धड़ा खड़ा करे
रगड़ा खड़ा करे कभी झगड़ा खड़ा करे
मुद्दा कोई हल्का कोई तगड़ा खड़ा करे
कुछ हल मिला ज्ञान की मुर्गी हुई कुडु़क
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक

किस बात को बिछाएं क्या बात तह करें
कितना विचार लाएं कितनी जिरह करें
किस बात को किस बात से कैसे जिबह करें
तब तक मगज निचोड़ा जब तक गया चुक
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक

स्क्रीन पे नज़रें गड़ाए जागते रहे
छोड़ी पढाई और ज्ञान बाँटते रहे
पुचकारते रहे किसी को डाँटते रहे
जब इम्तहान आया दिल बोल उठाधुक
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक

लाइक करूँ कि टैग करूँ या शेयर करूँ
चैटिंग से किसी की भला कितनी केयर करूं
जब तक दिमाग की चली मै भागता रहा
अब दिल ये कह रहा है बहुत भाग लिया रुक
तौबा फेसबुक मेरी तौबा फेसबुक!! 


by--पद्म सिंह

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